वफ़ा परस्त नहीं हूँ, तो बेवफ़ा भी नहीं
मैं जैसा भी हूँ मगर आदमी बुरा भी नहीं
उसी के सर पे क़यादत का ताज रक्खा है
वो शख़्स जिस को सियासत का तज्रिबा भी नहीं
ये कार, दौलतो-बंगला, तुम्हें मुबारक हो
मैं ऐसी फ़ालतू चीज़ों को सोचता भी नहीं
न जाने क्यों मुझे हर शख़्स पूजता है यहाँ
मैं आम आदमी हूँ, कोई देवता भी नहीं
मैं बच गया, तो मेरे दुश्मनों को हैरत है
ये सख़्त जान अभी ज़िन्दा है, मरा भी नहीं
किसी को बरसों अकेले में सोचते रहना
मरज़ ये ऐसा है जिसकी कोई दवा भी नहीं
फ़रोग़े-इल्म की दुनिया में मुत्मइन हूँ
मैं कोई कहे मुझे शायर,
मैं चाहता भी नहीं मेरा वुजूद पुर इसरार ही रहा
मैं वो दिया हूँ, जला भी नहीं, बुझा भी नहीं