जै जै कुँज विहारी जै जै कुँज विहारी(श्री राधा विजयते नमः)
(श्री मत् रमण विहारिणे नमः)
विश्वकर्मा पूजा
दिनाँक :- 16/09/2018
स्वामी श्री हरिदास राधेशनन्दन जू
विधि विधान से विश्वकर्मा पूजा करने से बढ़ेगा कारोबार, क्लिक कर जानें पूजा का मुहूर्त
शुभ मुहूर्त
इस साल वृश्चिक लग्न जो कि सुबह 10:17 बजे से12:34 तक है। यह विशेष लाभकारी वसफलतादायी है, क्योंकि मंगल पराक्रम भाव में उच्चका बैठा है।
विधि-विधान से करें पूजा
भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि-विधान से करने परविशेष फल प्रदान करती है। सबसे पहले पूजा केलिए जरूरी सामग्री जैसे अक्षत, फूल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी, रक्षा सूत्र, मिठाई, फलआदि की व्यवस्था कर लें। इसके बाद फैक्ट्री, वर्कशॉप, ऑफिस, दुकान आदि के स्वामी को स्नानकरके सपत्नीक पूजा के आसन पर बैठना चाहिए।कलश को स्थापित करें और फिर विधि—विधान सेक्रमानुसार या फिर अपने पंडितजी के माध्यम सेपूजा करें। पूजा धैर्यपूर्वक करें और सम्पन्न होने केबाद अपने ऑफिस, दुकान या फैक्टरी के साथियों वपरिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही पूजास्थान को छोड़ें।
विश्वकर्मा पूजा का आध्यात्मिक महत्व
भगवान विश्वकर्मा की पूजा हर व्यक्ति को करनीचाहिए। सहज भाषा में कहा जाए कि सम्पूर्ण सृष्टि मेंजो भी कर्म सृजनात्मक है, जिन कर्मो से जीव काजीवन संचालित होता है। उन सभी के मूल मेंविश्वकर्मा है। अतः उनका पूजन जहां प्रत्येक व्यक्तिको प्राकृतिक ऊर्जा देता है वहीं कार्य में आने वालीसभी अड़चनों को खत्म करता है।
17 सितंबर को ही क्यों होता है पूजन
भारत के कुछ भाग में यह मान्यता है कि अश्विनमास के प्रतिपदा को विश्वकर्मा जी का जन्म हुआथा, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा किलगभग सभी मान्यताओं के अनुसार यही एक ऐसापूजन है जो सूर्य के पारगमन के आधार पर तय होताहै। इस लिए प्रत्येक वर्ष यह 17 सितम्बर को मनायाजाता है।
विश्वकर्मा भगवान का परिचय
स्कंद पुराण के अंतर्गत विश्वकर्मा भगवान कापरिचय “बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च। विश्वकर्मासुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति” श्लोक के जरिएमिलता है। इस श्लोक का अर्थ है महर्षि अंगिरा केज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मविद्या कीजानकार थीं। उनका विवाह आठवें वसु महर्षिप्रभास के साथ संपन्न हुआ था। विश्वकर्मा इन दोनोंकी ही संतान थे। विश्वकर्मा भगवान को सभीशिल्पकारों और रचनाकारों का भी इष्ट देव माना जाता है।